मैं जानकी छेत्री, दार्जिलिंग से हूँ। मैं एक सरल स्वभाव की आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ। मेरी लेखनी मेरे जीवन के गहरे अनुभवों से लिखी गई है। यह सत्य की तरफ़ इशारा करती है। मैं स्वयं इस अनुभूति से गुज़रकर यह सब आप सबके साथ साझा कर रही हूँ। ना मैं एक साहित्यकार हूँ, ना ही हिंदी भाषा की पारंगत हूँ। पर जो मैंने जाना, जिस अनुभूति से गुजरी, उसे आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ।
सत्य को शब्दों में लिखा नहीं जा सकता, ना ही उसे बोला जा सकता है। यह एक कोशिश मात्र है। परंतु, उस तक पहुँचने के कुछ रास्ते बताए जा सकते हैं और वही कोशिश की जा सकती है। सत्य को जानने के बाद भी, जब तक साँसें चलती हैं, तब तक कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए, कर्म करते रहना चाहिए। यहाँ आकर एक प्रकार से सब समाप्त हो जाता है । हाम हर बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। पर हमें जीना नहीं छोड़ना है। एक बच्चे के भाँति संसार में, जो सीखना बाकी है, उसे सीखते जाना है।
सरल जीवन ही अद्भुत है। ज्ञान के आड़ में ज्ञानी बनकर नहीं बैठना है। जीवन में परम आनंद स्वयं को जानने से ही मिलता है। जिज्ञासु प्रवृत्ति से मानने नहीं, बल्कि जानने की प्रवृत्ति से जब मैं इस रास्ते पर चली, तब लक्ष्य तक पहुँचकर ही सब जान पाई। इसीलिए, मैं स्वयं को जानने पर जोर देती हूँ।
जीवन में उच्चतम सत्य को पाना है तो स्वयं को देखने, आत्मचिंतन करने और आत्मज्ञान प्राप्त करने पर ध्यान देना आवश्यक है। मेरी लेखनी मेरे अपने सत्य पर आधारित है। इनमें (आत्मबोध) उस अनंत, उस परमात्मा से मिलन के संघर्ष, आत्मपरिवर्तन, ध्यान, योग और अहंकार के बारे में बातें लिखी गई हैं। इसी विषय पर आधारित मेरी एक यूट्यूब चैनल भी है Janaki Gyanmala के नाम से। और माडां एप्लिकेशन के माध्यम से प्रकाशित पुस्तक गुनगुनाते शब्द भाग 2 और मन की गहराइयाँ भाग 2 में मेरी कुछ कविताएँ पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं।
मैं पाठकों से आशा करती हूँ कि मेरी लेखनी पढ़कर आप सभी में सत्य और उस परमात्मा के प्रति प्रेम जागे और आत्मपरिवर्तन के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिले।