मेरा हमेशा से रहा है की घर मेरा आशियाने की तरह हो समुन्द्र के किनारे, जहाँ शाम को लहरों मे खड़े होकर नजारा लो, जिससे दिनभर की सारी थकान, टेंशन दूर हो जाए। मेरी इस किताब की सारी कहानियाँ इसी पर आधारित है।मुझे शुरू से ही किताबे पढ़ने का शौंक रहा है, प्रेरणादायक कहानियाँ मुझे बहुत पसंद है। आशियाना नाम मुझे इसलिए सूझा, दुनियाँ में कितने ही बच्चे अपने मां बाप को घर से निकाल देते है, कई गरीब बच्चे दूसरे शहर में पढ़ने या नौकरी करने जाते हैं लेकिन रहने के लिए घर नहीं होते हैं घरों का किराया इतना होता है की वो देने मे असमर्थ होते हैं । इस आशियाना किताब में ऐसे ही कहानियों का जिक्र किया गया है कुछ तो मेरा आँखों देखा हाल है। मेरे किताब लिखने का श्रेय कहीं न कहीं करुण भईया का रहा है उन्होंने ही मुझे प्रोत्साहन दिया है की तुम लिख सकती हो पहले कुछ किताबें पढ़ने को कहा,फिर लिखने को। करुण भईया मेरे पापा के अच्छे दोस्त सूरज सक्सेना(अंकल) जी के बेटे है।