Description
‘अपराजिता स्तुति’ १०८ उल्लाला में छंदबद्ध लिखी गई माँ आदिशक्ति की स्तुति का हिंदी अनुवाद है जो गीतांजलि ‘विधायनी’ द्वारा लिखी गई है। गीतांजलि पिछले २५ साल से संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में रह रही हैं पर भारतीय परम्पराएँ और धर्म के प्रति आस्था उनकी जड़ों में सिंचित है।
अपनी मातुश्री के सानिध्य में वे माँ आदिशक्ति की स्तुति सुनती रहीं और उनके बाल मन में बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा और आस्था का कोई अदृश्य अंकुर उन्हें प्रेरित करता रहा कि वो माँ आदिशक्ति पर कुछ लिखें। साल दर साल ये कामना और दृढ़ होती गई। उन्होंने महसूस किया कि इस स्तुति में इतना सार्थक ज्ञान का भंडार छुपा है, जिसे संस्कृत न समझ पाने के कारण बहुत जन, विशेष रूप से बच्चे, इसमें निहित अप्रतिम संदेश और ब्रह्माण्ड में निहित माँ के हर स्वरूप की शक्तियों को समझ पाने में असमर्थ है; जिसके फलस्वरूप इसमें समाहित किसी शक्ति का व्यवहारिक जीवन में लाभ नहीं उठा सकते।
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