नदी के किनारे उमड़ता जनसैलाब, लाखों की संख्या में साधु, संत, तपस्वी, ज्ञानी, वैरागी, गृहस्थ, और रहस्यों से भरे नागा साधुओं के समूह सनातन परंपरा के इस ऐतिहासिक आयोजन में डुबकी लगाने को तत्पर दिखते हैं। चारों तरफ धार्मिक व्याख्यान, भगवत चर्चा, और देश एवं समाज के उत्थान के लिए चिंतन होता है। ऐसे प्रबुद्ध और तपस्वी व्यक्तित्व, जिनके दर्शन केवल कुम्भ के दौरान ही संभव हैं, इस आयोजन को विशेष बनाते हैं। विधि-व्यवस्था बनाए रखने और सभी आगंतुकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात परिश्रम करता सरकारी तंत्र भी प्रशंसनीय है। इन सबके बीच, अविरल बहती नदी की धारा सभी को शांति और मोक्ष प्रदान करने को आतुर प्रतीत होती है।
मुझे भी भगवत कृपा से अपने कर्तव्य-निर्वाह हेतु हरिद्वार कुम्भ-2021 का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, फिर भी कुम्भ मेले का सौंदर्य और संतों का उत्साह किसी भी प्रकार से कम नहीं प्रतीत हो रहा था। इसी दौरान, सनातन की सांस्कृतिक परंपरा के इस अत्यंत अद्भुत आयोजन को करीब से देखने का अवसर मिला। हर दिन ऐसा अनुभव हुआ कि, एक हिंदू होने के बावजूद, बचपन से युवावस्था तक अपने संस्कृति और परंपराओं के इस स्वर्णिम इतिहास को समेटे इस आयोजन के बारे में मेरी जानकारी अत्यंत सीमित रही है। यह भी महसूस हुआ कि इस विषय में मेरे युवा साथियों की जानकारी भी मुझसे अधिक नहीं है। अतः यह पुस्तक मेरे जैसे युवाओं के लिए एक छोटा सा प्रयास है, जिससे वे कुम्भ मेले का एक संक्षिप्त और सारगर्भित परिचय प्राप्त कर सकें|
पुस्तक के लेखन से पहले, लेखन के दौरान मैंने विभिन्न स्रोतों का अध्ययन किया है। कुंभ के संदर्भ में उपलब्ध विविध जानकारियों में से जो सबसे प्रभावी और व्यावहारिक लगीं, उन्हें पुस्तक में क्रमबद्ध रूप से सम्मिलित किया गया है। तथापि, मैं पाठकों से यह अपेक्षा करता हूं कि यदि उन्हें किसी भी शब्द, वाक्य, या विषय से कोई आपत्ति हो, तो कृपया मुझे अवश्य लिखें। आपके सुझावों से मैं स्वयं को कृतार्थ और अपने लेखन को अधिक परिपूर्ण समझूंगा|
पौराणिक कथाओं पर हमारे देश और समाज में कई अलग-अलग विचार देखने को मिलते हैं। इसका एक प्रमुख कारण पौराणिक कथाओं का प्रतीकात्मक स्वरूप है, जिसकी व्याख्या विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग संदर्भों में की जाती है। कुछ प्राचीन धार्मिक और आध्यात्मिक घटनाओं के लिए विभिन्न पुराणों में भिन्न कथाएं भी प्राप्त होती हैं। यद्यपि पुराणों में गहरे और व्यावहारिक ज्ञान का भंडार समाहित है, लेकिन अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए दुष्प्रचार के कारण कुछ लोगों ने इन्हें अप्रमाणिक ग्रंथ कहने का प्रयास किया है।
इतने प्राचीन होने के कारण हमारे गौरवशाली इतिहास के एक ही तथ्य की भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से व्याख्याएं उपलब्ध हैं। यही कारण है कि आज इक्कीसवीं सदी में युवाओं के लिए यह समझना कठिन हो गया है कि किसे सत्य मानें और किसे असत्य। हालांकि, यह हमारे समाज की एक सुंदर विशेषता है कि यहां हर दृष्टिकोण को सुना, पढ़ा, और सम्मान दिया जाता है। हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार प्राप्त है। यही उदार गुण हमें हर कठिन समय से उबरने में मदद करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर हमने विश्व को शांति का मार्ग दिखाने का भी कार्य किया है।
किसी देश या भूखंड पर लंबे समय तक अधिकार बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है कि वहां के लोगों को उनके इतिहास और संस्कृति से विमुख कर दिया जाए। विदेशी आक्रमणकारियों ने और बाद में अंग्रेजों ने हमारे देश में इस कार्य को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया। आक्रमणकारियों ने हमारे प्रमुख शिक्षा केंद्रों को पूरी तरह नष्ट कर दिया, धर्मग्रंथों की पांडुलिपियां जला दीं, और पुस्तकालयों को अग्नि के हवाले कर दिया। इसके बाद, जब अंग्रेज आए और देश में अपनी सत्ता स्थापित करने में सफल हुए, तो उन्होंने न केवल हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव किया, बल्कि पौराणिक ग्रंथों की निंदा और उनके तथ्यों से छेड़छाड़ भी की। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे बीच धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि और शंका की भावना उत्पन्न हो गई।
आज यह आवश्यक हो गया है कि युवा अपनी शंकाओं का समाधान स्वयं खोजें। हमें प्राचीन साहित्य का अध्ययन करना चाहिए और उनके मूल संदेशों को आत्मसात करना चाहिए। विभिन्न मतभेदों को सकारात्मक दृष्टिकोण से समझना और जो तथ्य वर्तमान समय में व्यावहारिक नहीं हैं, उन्हें नजरअंदाज करने की आवश्यकता है। हमारे गौरवशाली इतिहास और प्राचीन ग्रंथों में जीवन की समस्त वैचारिक और व्यावहारिक समस्याओं का समाधान मौजूद है। वे अपने आप में पूर्ण हैं और आज भी हमें मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।