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Need Se Bikhre Pankh

Need Se Bikhre Pankh

Author: Pragati Kumari

Book Cost

Original price was: ₹229.Current price is: ₹199.

Short Description

“नीड़ से बिखरे पंख” सिर्फ एक कविता संग्रह नहीं, बल्कि उन अहसासों की झलक है जो हम अक्सर महसूस तो करते हैं… पर कह नहीं पाते। कभी अकेलापन, कभी यादों की भीड़, कभी अपनी पहचान की तलाश, ये पन्ने उन्हीं चुप लम्हों को आवाज़ देते हैं।

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Original price was: ₹229.Current price is: ₹199.

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Page Count

119

Book Type

Paperback

ISBN

978-93-6402-337-5

Mrp

229

Genre

Poetry

Language

Hindi

About the Book

“नीड़ से बिखरे पंख” सिर्फ एक कविता संग्रह नहीं, बल्कि उन अहसासों की झलक है जो हम अक्सर महसूस तो करते हैं… पर कह नहीं पाते। कभी अकेलापन, कभी यादों की भीड़, कभी अपनी पहचान की तलाश, ये पन्ने उन्हीं चुप लम्हों को आवाज़ देते हैं। ये कविताएँ किसी अपने की तरह हैं, जो बिना पूछे समझ जाती हैं कि आप क्या महसूस कर रहे हैं। यह किताब उन छोटे-छोटे लम्हों की बात करती है, जब हम चुपचाप सोचते रहते हैं, किसी याद में खो जाते हैं, या बिना वजह मुस्कुरा देते हैं। इसमें अकेलापन है, थकान है, डर है, लेकिन साथ ही है प्रेम, उम्मीद, और अपने आप से जुड़ने की एक शांत सी चाह। कई बार ऐसा होता है कि दिल भरा होता है, लेकिन बोलने के लिए शब्द नहीं मिलते। यही खामोशी इस किताब में कविता बनकर बह रही है धीरे-धीरे, पर बहुत सच्चाई के साथ। हर कविता मानो आपके दिल के किसी कोने से निकलकर आई हो जहाँ कुछ बिखरा हुआ है, पर उड़ने की उम्मीद अब भी बाकी है।

About the Author

“प्रगति, जिन्हें उनके परिवार और करीबी स्नेहपूर्वक नेहा के नाम से जानते हैं, का जन्म 7 जुलाई 2001 को बिहार के जमुई जिले में हुआ। शब्दों से उनका रिश्ता बचपन से ही अनोखा रहा है , एक ऐसा रिश्ता जो भावनाओं, ख्वाबों और अनकहे सवालों को पन्नों पर उतरने की राह दिखाता रहा। प्रगति ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जमुई में पूरी की और फिर इंजीनियर बनने के सपने को साकार करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अगरतला से स्नातक की डिग्री हासिल की। तकनीकी शिक्षा की राह पर चलते हुए भी उनका मन साहित्य की ओर झुका रहा , उनकी डायरी धीरे-धीरे कविताओं, आत्मसंवादों और संवेदनशील लम्हों से भरती चली गई। जीवन की व्यस्तता, अनिश्चितताएं और नए अनुभवों ने उन्हें जब भीतर झाँकने पर मजबूर किया, तब उन्होंने अपने शब्दों में फिर से खुद को पाया। यह आत्मिक वापसी ही उनके लेखन का असली पुनर्जन्म था। वर्तमान में प्रगति ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी में ‘वर्क फ्रॉम होम’ के तहत कार्यरत हैं, लेकिन उनके लिए लेखन केवल एक शौक नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति और आत्म-खोज का माध्यम है। यह पुस्तक उनकी रचित कविताओं का एक संग्रह है, जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों, भावनाओं, प्रश्नों और संवेदनाओं को गहराई से पिरोया है। प्रगति की कविताएं जीवन के संघर्ष, आत्मसंघर्ष, उम्मीदों, प्रेम, अकेलेपन, और आत्म-समझ की कोमल परतों को छूती हैं। यह संग्रह उन सभी पाठकों के लिए है जो अपने भीतर की आवाज़ को फिर से सुनना चाहते हैं और यह समझना चाहते हैं कि हम सब अपने भावनात्मक सफर में कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़े हैं। यह सिर्फ कविताओं की किताब नहीं, एक सच्ची कोशिश है खुद से मिलने की, सपनों को सहेजने की, और अपने शब्दों में अपनी दुनिया को पहचानने की। “

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