Description
आज नैतिक अवमूल्यन और सामाजिक विसंगतियों के बीच, छोटे से छोटा दुख भी मन की गहराइयों को छू लेता है। मन का आहत होना ही अभिव्यक्ति का मूल बनकर रचनाओं में प्रकट हो जाता है। आज भी लोक-मंगल की कामना करने वाले राम हैं, जो समय समय पर हजारों कष्टों को सहकर अपनी मनोव्यथा को अपने भीतर समेटे रहते हैं। भाव की कोमलता, मधुरता और नि:स्वार्थ लालसा इनका शस्त्र है। संस्कृति जब तक जीवन में से उद्भूत नहीं तब तक जीवन के विविध आयाम एक दूसरे से संग्रथित होकर एक विशाल लक्ष्य कैसे पा सकेंगे। इस दौर में इन सभी मिले-जुले विचारों और अवसादों का प्रक्षालन करना ही सामाजिक और साहित्यिक दायित्व है। वैचारिक प्रौढ़ता, दायित्व वहन की गुणात्मक एकबद्धता, जीवन के उन्नयन, उत्कर्ष और प्रगति की वाहक बन सके यह कृति, तो अपने को धन्य मानूंगी। मैं खोजना चाहती हूं, इस छोटे से प्रयास में सिमटने का भाव, दुरंत परिग्रह बांटने के बजाय दिखावे की चाह रिश्तों के प्रति उदासीनता मानव कैसै और कब तक ढो सकेगा! आइए एकजुट होकर हम सभी संकल्पों की अंजुरी भरे और ध्यान रखें कि परिवर्तन तो लाना है ,पर विवेक और बुद्धि के साथ यथार्थ के झरोखे से तम को चीरने वाली किरण का स्वागत भी करना है।
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