Description
बचपन में दादी नानी जादूई दिनों की कहानियां सुनाया करती थी लेकिन किसने सोचा था कि जादूई दिन वाकई में होते भी होंगे। जी हां, वो जादूई दिन जिसे लगभग हर व्यक्ति ने ना सिर्फ जिए हैं बल्कि यादों के पिटारे में सहेज के भी रखे हैं, वो दिन जिन्हें याद करके आँखें नम हो जाती हैं लेकिन साथ ही मन में मंद सी मुस्कान और दिमाग में वहीं दृश्य उत्पन्न हो जाते हैं। बाल्यकाल की अजीबो गरीब अठकलियां, दोस्तों का गुट बनाना, अपने पसंदीदा टीचर को खुश करना और जन्मदिन पर खास दोस्त को ज्यादा टॉफी देना, अपनी सखी के साथ अलग से बैठकर समय बिताना, बाते करना और आखरी दिन पर सबसे गले लगकर रोना आदि यौवन के असमंजस के स्कूल और कॉलेज के न जाने कितने ही अनमोल लम्हों को सबने अपने भीतर संजोया है। अपने इन्हीं अनमोल लम्हों को इस पुस्तक के जरिए फिर से जीवित करने का प्रयास लेखकों द्वारा किया गया हैं। शब्दांचल भाग-7, “ये उन दिनों की बात हैं” आप सभी के लिए हमारे माध्यम से आपके अपने खूबसूरत दिनों को एक बार फिर से जीवंत करने की एक छोटी सी कोशिश है।
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